Friday, November 1, 2019

मेरे गले की राग By Shubham Srivastava


मेरे गले की राग 

ये खुशनसीबी है मेरी की नजरे मन मिली आपसे की किसी को देखने की आरजू ही न रही
अगर नजर ए मन मिली भी किसी से फिर भी चाहत आपकी है

गैरो के लिए तो हम मसरूफ ही है,पर फिर भी मेरी मसरूफियत के हर लम्हे में शामिल है तुम्हारी यादें
जरा सोचो मेरी फुर्सतों का आलम क्या होता होगा

हम अनजान थे इस बात से , की आप अजनबी इस कदर हो जायेंगे
हम अनजान थे इस बात से , की वो रिश्ते को एक झटके में तोड़ जायेंगे

की हमे सबसे पहले जवाब देने वाले, हमारा मैसेज सीन करके छोड़ जायेंगे
हम तो आपके थे और आपके ही होकर रह जायेंगे

उसके लिए ये बात थी खास उसकी तस्वीरें थी मेरे पास
फ़ोन कट किया था केह के की दूर जाएंगे ना इसबार,
हुआ यूं कि वो बिन बताए चले गए सात समुंदर पार,
फिर उसकी बात फिर वही याद मुझको बहुत सताता था
अब तो रूबरू होना मुनासिब नहीं था
बस अब तस्वीरों से ही गुप्तगू करना बाकी था

फासले यार ने यूँ गम ज़दा कर दिया हम को
कहते कुछ और , कह और जाती है
आबादी की दुआ उनकी करे लाख मगर
फिर भी तमन्ना ए गुफ्तोंसुनीद रह जाती है




By Shubham Srivastava   23:39 pm  01/11/2019

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