Thursday, January 16, 2020

वो भी क्या दिन थे, जब हम विद्यालय जाते थे by SHUBHAM SRIVASTAVA

                                                  मेरे गले की 'राग'



वो भी क्या दिन थे, जब हम विद्यालय जाते थे
जिम्मेदारियां कम थी, पर किताबो के वज़न भरी थे
पढाई छे विषय जानी होती थी
किताबे सारी ले के जाते थे

विद्यालय का समय ९.३० से था, पर हम ८ बजे ही पहुँच जाते थे
दोस्तों के साथ साथ अपनी वाली का भी इंतज़ार करते थे
और बाद में मिल के प्रार्थना की तयारी करते थे
वो भी क्या दिन थे ........

अनुशाशन इतना था की छोटो को प्यार, और बड़ो को सम्मान देते थे
छोटे सबसे आगे और बड़े बच्चे सबसे पीछे खड़े होते थे
प्रार्थना होने के बाद सभी पंक्ति बद्ध अपनी कक्षा में जाते थे
वो भी क्या दिन थे......

पढ़ने वाले छात्र आगे की बेंच पर बैठते थे
मध्यम वर्ग के छात्र बीच वाली बेंच पर बैठते थे
और सबसे लद्धड़ छात्र सबसे पीछे वाली बेंच पर बैठते थे
वो भी क्या दिन थे .............

कुछ बच्चे तो पूरा दिन पढ़ते थे और खेलने वाले समय खेलते थे
पर कुछ बच्चे पूरा दिन लघुशंका और दीर्घशंका में ही बीतते थे

हमारी कक्षा में लड़किया कम और लड़के ज्यादा थे
इसलिए लड़किया एक पंक्ति में और लड़के २ पंक्ति में बैठते थे

विद्यालय में लड़को को भैया और लड़कियों को बहन बुलाने के निर्देश थे
पर हमारी कक्षा में, कोई तेरा वाला, कोई मेरा वाला, कोई तेरी वाली कोई मेरी वाली कह के बुलाते थे

पढ़ने वाले लड़के अपनी सीट पर बीजगणित और त्रिकोणमिति के फॉर्मूले लिखते थे
न पढ़ने वाले अपनी सीट पर दिल बनाते थे बीच में तीर खींचते थे
और ऊपर अपना नाम , नीचे अपनी गर्ल फ्रेंड का नाम लिखते थे
 वो भी क्या दिन थे......

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