Wednesday, April 22, 2020

यह कन्या रूपी रत्न तुम्हे मैं आज समर्पण करता हु- Shri K.K.Srivastava



मेरे गले की राग

एक पिता के लिए एक बेटी को विदा करना बहुत ख़ुशी की बात होती है पर उनको बहुत सी यादें उनकी आँखे नम कर देती है एक ऐसी ही कविता लिखी है श्री कौशल किशोर श्रीवास्तव (अधिवक्ता) ने जिनकी कविता मर्म से युक्त आँखों को नम कर देने वाली है,


यह कन्या रूपी रत्न तुम्हे मैं आज समर्पण करता हु,
 निज ह्रदय का प्यारा टुकड़ा लो तुमको अर्पण करता हु॥
माँ की ममता का सागर यह मेरी आँखों का तारा है
कैसे बतलाऊ मैं तुमको किस लाड प्यार से पाला है

तुम द्वारे मेरे आये हो मैं क्या सेवा कर सकता हु
यह कन्या रूपी रत्न तुम्हे मैं आज समर्पण करता हु
मेरे ह्रदय के नील गगन का यह चंदा सी तारा थी,
 मैं अब तक जान पाया था इसपर अधिकार तुम्हारा भी

लो आज अमानत लो अपनी कर बद्ध निवेदन करता हु,
 यह कन्या रूपी रत्न तुम्हे मैं आज समर्पण करता हु

इससे तो भूल बहुत होगी यह सरला है सुकुमारी है
इसके अपराध क्षमा करना निज माँ की राजदुलारी है
मम कुटिया की यह सोभा है जो बरबस अर्पण करता हु
यह कन्या रूपी रत्न तुम्हे मैं आज समर्पण करता हु

भाई से आज बहन बिछड़ी माँ से बिछड़ी माँ की ममता 
बहनो से बिछड़ी स्नेहलता लो तुम हो उसके आज पिता॥
मैं आज पिता कहलाने का अधिकार समर्पण करता हु
 यह कन्या रूपी रत्न तुम्हे मैं आज समर्पण करता हु

यह जाएगी सब रोयेंगे छलकेगी नैनो का सागर
माता भैया बहने रोये रोयेंगे भी करुणा सागर
लो आज तुम्हे मम कुटिया की प्रिय आश समर्पण करता हु,
 यह कन्या रूपी रत्न तुम्हे मैं आज समर्पण करता हु॥

Written By- Shri K.K.Srivastava                                    Published By- Shubham Srivastava

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