Wednesday, November 28, 2018

"वक़्त " by Shubham Srivastava

''मेरे गले की राग''

मेरी उम्र बहुत ही छोटी थी, पर राग मेरे साथ थी, 
उस राग में मै रम गया जो राग मेरे साथ थी,

राग की मै रागिनी में चमकता था बहुत,
एक दिन ऐसा भी आया वो चमक अब दूर थी,

प्यारी राग की कमी  महसूस मै करने लगा , 
ना किसी को कह सका और ना ही खुद मै सह सका

वक़्त था जब गूंजती थी उनके अल्फाजो के सुर,
आज का वक़्त भी गजब है, चित्र है, वो सुर नहीं।।


मैं भी एक अजब इंसान हूँ,
परेशान हूँ पर खिलता गुलाब हूँ ,
आपका सन्देश न आये पर एक उम्मीद रखता हूँ 
आपका सन्देश आये तो बस एक ख्वाब समझता हूँ,
दिल खिल खिला उठता है आपसे गुप्तगू करके 
रोता भी खूब है रूसवा हो कर के ,,,,

Date-28/11/2018 00:54 am                                                    written by-shubham srivastava

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